बचपन की यादें
बचपन की यादें ताज़ा कर देते हैं मेरे सरकारी स्कूल जोकि मेरे घर से बिलकुल पास में हैं मेरे एक से आठवीं तक की पढ़ाई इन्हीं स्कूलों में हुई है और आधा से ज्यादा बचपन भी यहीं बीता है ।
स्कूल का मुख्य दरबाजे पे एक घन्टा पहले खड़ा हो जाना और उसके खुलते ही भागकर पहले अपनी कक्षा की दीवार से हाथ लगाके अपनी जीत साबित करना उस समय किसी गोल्ड मेडल से कम नहीँ था ,
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पाठशाला की एक तस्वीर |
उसके बाद नमस्ते सर नमस्ते सर की आवाज पूरे मैदान में फैल जाती थी जब मास्टर जी स्कूल में प्रवेश करते थे । मास्टर जी का सभी को आशीर्वाद दिए बिना आगे जाना उतना ही मुश्किल होता था जितना आज किसी महान हस्ती का ।
उसके बाद कक्षा में भी उन मास्टर जी का हाथ उठता लेकिन बोह आशीर्वाद नहीँ होता था ,
उस मार से हमारा पेट कहां भरता था पेट भरने के लिए खिचड़ी जो होती थी , घण्टी की आवाज़ और फिर थाली गिलास लेकर भागना आम सी बात हो गयी थी , पहले के 15 मिनट थालियों का शोर बाली बात आज भी दिल में जगह कर देती है ,
बोह एक रुपया मिलने की खुशी और उस दिन के तो हम राजे हुवा करते थे । कब पांचवी पास कर गए पता ही नही चला , पाठशाला बदल गयी लेकिन घर से दूरी नहीँ , अब नई पाठशाला का खुला मैदान ओर सामने दिखते धौलाधार के पहाड़ दिल को खुशी से भर देते थे ।
सर्दियों के दिनों में सरकारी स्कूलों में बाहर बिठाना आम बात है और फिर बच्चों का न पढ़ना भी । स्कूल के मैदान से एक तरफ दिखते थी सड़क और उसकी विपरीत दिशा में ऊंचे धौलाधार के पहाड़ ।
सर्दियों में मैदान में बैठ कर सड़क की बस्से , गाड़ियाँ गिनने का खेल 😀 (भाई दाई दिशा तेरी और बायीं मेरी देखते हैं किसकी ओर ज्यादा गाड़िया जाती हैं) उस समय खेल 30-40 गाड़ियों पे खत्म हो जाता था जो आज खेल पाना संभव नही है ।
और दूसरी ओर खड़े धौलाधार , समझ नहीँ आता था क्या ये पूरे बर्फ के हैं , समय गुजरता गया और बोह मैदान भी, सरकारी योजनाएं इसे लुप्त होने से बचा नही पाए , कोशिश हर साल होती है पर नाकाम होने की पाठशाला बदल गयी और ये सब बातें भी ।
9 comments:
Waahh Bhai ��
jbrdat bhai but 1st m fail hone wali baat to likhi hi nh
जरूर लिखेंगे भाई अगले पार्ट में 😁
बहुत खूब
Superb brother.. keep it up.
Bahut khoob bhai
Bhot acchi or sahi baat he school vali. Isko Padhke Hume bhi apne school ki yaad aa gayi.
Very Nice.
Very nice
Nice moments
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